दूर के फासलें, पास लगने
लगे,
फिर नये अनकहें, ख़्वाब
सजने लगे,
ख्वाईशें फिर नयी, ऐसी
जगने लगी,
फुल चाहत के, चेहरेपे
खिलने लगे,
हम न जाने कहा, ये रुका
काफ़िला,
रास्ते मंजिलोंसे, अब
जुड़ने लगे,
ना कहा ना सुना, फिर भी
समझा दिया,
राज़ आँखोंसे दिलमें, अब उतरने
लगे,
क्या पता अब हमें, हैं
जाना कहा,
तेरे सायें के पीछे, सब
चलने लगे,
हैं
यकीन अब मुझे, तूम मिलोगे यही,
हर
दुआमें तुझे ही, हम मांगने लगे,
-परशुराम महानोर
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